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ग़ज़ल
भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे
यही करिश्मे हुआ किए हैं यही करिश्मे हुआ करेंगे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होने तक
चैन से बैठें वो आहों में असर होने तक
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़